श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम के सद्गुणों का वर्णन, राजा दशरथ का श्रीराम को युवराज बनाने का विचार  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  2.1.35 
 
 
एतैस्तु बहुभिर्युक्तं गुणैरनुपमै: सुतम्।
दृष्ट्वा दशरथो राजा चक्रे चिन्तां परंतप:॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  शत्रुओं को संताप देने वाले राजा दशरथ ने देखा कि उनके पुत्र श्रीराम में कई दुर्लभ और उत्कृष्ट गुण हैं। राजा दशरथ ने उन्हें देखकर मन-ही-मन कुछ सोचना शुरू कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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