श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम के सद्गुणों का वर्णन, राजा दशरथ का श्रीराम को युवराज बनाने का विचार  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  2.1.33 
 
 
तथा सर्वप्रजाकान्तै: प्रीतिसंजननै: पितु:।
गुणैर्विरुरुचे रामो दीप्त: सूर्य इवांशुभि:॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  जैसे सूर्यदेव अपनी किरणों से जग को प्रकाशित करते हैं, उसी तरह श्रीरामचन्द्रजी अपने सद्गुणों से सभी प्रजाओं के प्रिय थे और अपने पिता की प्रीति को बढ़ाते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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