श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम के सद्गुणों का वर्णन, राजा दशरथ का श्रीराम को युवराज बनाने का विचार  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  2.1.27 
 
 
श्रैष्ठॺं चास्त्रसमूहेषु प्राप्तो व्यामिश्रकेषु च।
अर्थधर्मौ च संगृह्य सुखतन्त्रो न चालस:॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  उन्होंने सभी प्रकार के हथियारों और संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं के मिश्रित नाटकों के ज्ञान में श्रेष्ठता हासिल की थी। वे धन और धर्म को एकत्र (पालन) करते हुए उसी के अनुसार कार्य करते थे और कभी भी आलस्य को अपने पास नहीं आने देते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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