श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम के सद्गुणों का वर्णन, राजा दशरथ का श्रीराम को युवराज बनाने का विचार  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.1.18 
 
 
अरोगस्तरुणो वाग्मी वपुष्मान् देशकालवित्।
लोके पुरुषसारज्ञ: साधुरेको विनिर्मित:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  उनका शरीर निरोग तथा अवस्था युवा थी। वे सुंदर वक्ता तथा सुंदर शरीर से सुशोभित थे। वे देश और काल की परिस्थितियों को समझने वाले थे। उन्हें देखते ही ऐसा लगता था कि विधाता ने संसार में समस्त पुरुषों के सार तत्व को समझने वाले साधु पुरुष के रूप में एकमात्र श्रीराम को ही प्रकट किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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