श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 75: राजा दशरथ की बात अनसुनी करके परशुराम का श्रीराम को वैष्णव-धनुष पर बाण चढ़ाने के लिये ललकारना  »  श्लोक 27-28
 
 
श्लोक  1.75.27-28 
 
 
तदेवं वैष्णवं राम पितृपैतामहं महत्।
क्षत्रधर्मं पुरस्कृत्य गृह्णीष्व धनुरुत्तमम्॥ २७॥
योजयस्व धनु:श्रेष्ठे शरं परपुरंजयम्।
यदि शक्तोऽसि काकुत्स्थ द्वन्द्वं दास्यामि ते तत:॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  हे श्रीराम! यह महान वैष्णव धनुष पीढ़ियों से मेरे पिता और उनके पूर्वजों के अधिकार में रहा है। अब तुम क्षत्रिय धर्म को ध्यान में रखते हुए इस श्रेष्ठ धनुष को हाथ में लो। इस धनुष पर एक ऐसा बाण चढ़ाओ जो शत्रु की नगरी पर विजय प्राप्त कर सके। यदि तुम ऐसा करने में सफल होते हो, तो मैं तुम्हें युद्ध का अवसर दूँगा।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे पञ्चसप्ततितम: सर्ग:॥ ७५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें पचहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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