श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 75: राजा दशरथ की बात अनसुनी करके परशुराम का श्रीराम को वैष्णव-धनुष पर बाण चढ़ाने के लिये ललकारना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  1.75.2 
 
 
तदद्भुतमचिन्त्यं च भेदनं धनुषस्तथा।
तच्छ्रुत्वाहमनुप्राप्तो धनुर्गृह्यापरं शुभम्॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  वह धनुष का टूटना एक अद्भुत और अचिन्तनीय बात थी। जब मैंने ये सुना, तो मैं एक और बेहतर धनुष लेकर आया हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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