श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 68: राजा जनक का संदेश पाकर मन्त्रियों सहित महाराज दशरथ का मिथिला जाने के लिये उद्यत होना  »  श्लोक 3-5
 
 
श्लोक  1.68.3-5 
 
 
बद्धाञ्जलिपुटा: सर्वे दूता विगतसाध्वसा:।
राजानं प्रश्रितं वाक्यमब्रुवन् मधुराक्षरम्॥ ३॥
मैथिलो जनको राजा साग्निहोत्रपुरस्कृत:।
मुहुर्मुहुर्मधुरया स्नेहसंरक्तया गिरा॥ ४॥
कुशलं चाव्ययं चैव सोपाध्यायपुरोहितम्।
जनकस्त्वां महाराज पृच्छते सपुर:सरम्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  उन सभी दूतों ने दोनों हाथ जोड़ निर्भय हो राजा से मधुर वाणी में यह विनययुक्त बात कही —- ‘महाराज! मिथिलापति राजा जनक ने अग्निहोत्र की अग्नि को सामने रखकर स्नेहपूर्ण मधुर वाणी में सेवकों सहित आपका तथा आपके उपाध्याय और पुरोहितों का बारम्बार कुशल-मंगल पूछा है।’
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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