उन सभी दूतों ने दोनों हाथ जोड़ निर्भय हो राजा से मधुर वाणी में यह विनययुक्त बात कही —- ‘महाराज! मिथिलापति राजा जनक ने अग्निहोत्र की अग्नि को सामने रखकर स्नेहपूर्ण मधुर वाणी में सेवकों सहित आपका तथा आपके उपाध्याय और पुरोहितों का बारम्बार कुशल-मंगल पूछा है।’