ततो हि मे भयं देव प्रसादं कर्तुुमर्हसि।
एवमुक्तस्तया राम सभयं भीतया तदा॥ ४॥
तामुवाच सहस्राक्षो वेपमानां कृताञ्जलिम्।
मा भैषी रम्भे भद्रं ते कुरुष्व मम शासनम्॥ ५॥
अनुवाद
तब रम्भा बोली– हे देवेश्वर! मुझे उनसे बहुत डर लगता है, आप मुझ पर कृपा करें। श्रीराम! डरी हुई रम्भा के इस प्रकार भय पूर्वक कहने पर सहस्र नेत्रधारी इंद्र हाथ जोड़कर खड़ी और थर-थर काँपती हुई रम्भा से इस प्रकार बोले – रम्भे! तू भय मत कर, तेरा भला हो, तू मेरी आज्ञा मान ले।