श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 64: विश्वामित्र का रम्भा को शाप देकर पुनः घोर तपस्या के लिये दीक्षा लेना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  1.64.20 
 
 
नहि मे तप्यमानस्य क्षयं यास्यन्ति मूर्तय:।
एवं वर्षसहस्रस्य दीक्षां स मुनिपुंगव:।
चकाराप्रतिमां लोके प्रतिज्ञां रघुनन्दन॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! मुनिवर विश्वामित्र ने तपस्या के दौरान अपने शरीर के किसी भी अंग के नष्ट न होने का संकल्प लिया था। इस प्रतिज्ञा के साथ उन्होंने एक हज़ार वर्षों की तपस्या करने की दीक्षा ग्रहण की। उनकी यह प्रतिज्ञा संसार में अद्वितीय है।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे चतु:षष्टितम: सर्ग:॥ ६४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें चौंसठवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ६४॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.