श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 64: विश्वामित्र का रम्भा को शाप देकर पुनः घोर तपस्या के लिये दीक्षा लेना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  1.64.19 
 
 
तावद् यावद्धि मे प्राप्तं ब्राह्मण्यं तपसार्जितम्।
अनुच्छ्वसन्नभुञ्जानस्तिष्ठेयं शाश्वती: समा:॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  जब तक मैं अपनी तपस्या के माध्यम से ब्राह्मणत्व प्राप्त नहीं कर लेता, चाहे अनंत वर्ष ही क्यों न बीत जाएँ, मैं न तो कुछ खाऊँगा न पीऊँगा और न ही साँस लूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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