तावद् यावद्धि मे प्राप्तं ब्राह्मण्यं तपसार्जितम्।
अनुच्छ्वसन्नभुञ्जानस्तिष्ठेयं शाश्वती: समा:॥ १९॥
अनुवाद
जब तक मैं अपनी तपस्या के माध्यम से ब्राह्मणत्व प्राप्त नहीं कर लेता, चाहे अनंत वर्ष ही क्यों न बीत जाएँ, मैं न तो कुछ खाऊँगा न पीऊँगा और न ही साँस लूँगा।