वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 1: बाल काण्ड
»
सर्ग 64: विश्वामित्र का रम्भा को शाप देकर पुनः घोर तपस्या के लिये दीक्षा लेना
»
श्लोक 18
श्लोक
1.64.18
अथवा नोच्छ्वसिष्यामि संवत्सरशतान्यपि।
अहं हि शोषयिष्यामि आत्मानं विजितेन्द्रिय:॥ १८॥
अनुवाद
play_arrowpause
अथवा मैं सौ वर्षों तक भी साँस तक नहीं लूँगा। इंद्रियों पर विजय प्राप्त करके इस शरीर को सुखा डालूँगा।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.