श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 64: विश्वामित्र का रम्भा को शाप देकर पुनः घोर तपस्या के लिये दीक्षा लेना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  1.64.17 
 
 
बभूवास्य मनश्चिन्ता तपोऽपहरणे कृते।
नैवं क्रोधं गमिष्यामि न च वक्ष्ये कथंचन॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  तपस्या के अपहरण के कारण उनके मन में यह विचार उठा कि अब से न तो क्रोध करूँगा और न ही किसी भी स्थिति में कुछ बोलूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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