वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 1: बाल काण्ड
»
सर्ग 64: विश्वामित्र का रम्भा को शाप देकर पुनः घोर तपस्या के लिये दीक्षा लेना
»
श्लोक 17
श्लोक
1.64.17
बभूवास्य मनश्चिन्ता तपोऽपहरणे कृते।
नैवं क्रोधं गमिष्यामि न च वक्ष्ये कथंचन॥ १७॥
अनुवाद
play_arrowpause
तपस्या के अपहरण के कारण उनके मन में यह विचार उठा कि अब से न तो क्रोध करूँगा और न ही किसी भी स्थिति में कुछ बोलूँगा।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.