श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 64: विश्वामित्र का रम्भा को शाप देकर पुनः घोर तपस्या के लिये दीक्षा लेना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  1.64.12 
 
 
यन्मां लोभयसे रम्भे कामक्रोधजयैषिणम्।
दशवर्षसहस्राणि शैली स्थास्यसि दुर्भगे॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  दुर्भाग्यवश रम्भा! मैं काम और क्रोध पर विजय प्राप्त करने की इच्छा रखता हूँ और तुम मुझे लुभा रही हो। तो, इस अपराध के कारण तुम दस हजार साल तक एक पत्थर की प्रतिमा के रूप में खड़ी रहोगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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