श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 62: विश्वामित्र द्वारा शुनःशेप की रक्षा का सफल प्रयत्न और तपस्या  »  श्लोक 2-4h
 
 
श्लोक  1.62.2-4h 
 
 
तस्य विश्रममाणस्य शुन:शेपो महायशा:।
पुष्करं ज्येष्ठमागम्य विश्वामित्रं ददर्श ह॥ २॥
तप्यन्तमृषिभि: सार्धं मातुलं परमातुर:।
विषण्णवदनो दीनस्तृष्णया च श्रमेण च॥ ३॥
पपाताङ्के मुने राम वाक्यं चेदमुवाच ह।
 
 
अनुवाद
 
  श्री राम! जब वे विश्राम करने लगे, उस समय महायशस्वी शुनःशेप ज्येष्ठ पुष्कर में आकर ऋषियों के साथ तपस्या करते हुए अपने मामा विश्वामित्र से मिला। वह अत्यन्त आतुर और दीन हो रहा था। उसके मुख पर विषाद छा गया था। वह भूख-प्यास और परिश्रम से दीन हो मुनि की गोद में गिर पड़ा और इस प्रकार बोला-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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