श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  1.60.8 
 
 
तत: प्रवर्त्यतां यज्ञ: सर्वे समधितिष्ठत।
एवमुक्त्वा महर्षय: संजह्रुस्ता: क्रियास्तदा॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  इस तरह विचार करके उन्होंने सर्वसम्मतिसे यह निश्चय किया कि ‘यज्ञ आरम्भ किया जाय।’ ऐसा निश्चय करके महर्षियोंने उस समय अपना-अपना कार्य आरम्भ किया॥ ८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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