श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 6-7
 
 
श्लोक  1.60.6-7 
 
 
अग्निकल्पो हि भगवान् शापं दास्यति रोषत:॥ ६॥
तस्मात् प्रवर्त्यतां यज्ञ: सशरीरो यथा दिवि।
गच्छेदिक्ष्वाकुदायादो विश्वामित्रस्य तेजसा॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  भगवान विश्वामित्र बहुत शक्तिशाली और क्रोधी हैं। यदि उनकी बात न मानी गई, तो वे क्रोधित होकर शाप दे सकते हैं। इसलिए ऐसा यज्ञ करना चाहिए जिससे विश्वामित्र के तेज के बल पर इक्ष्वाकुवंशी त्रिशंकु सशरीर स्वर्गलोक जा सकें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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