श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 4-6h
 
 
श्लोक  1.60.4-6h 
 
 
विश्वामित्रवच: श्रुत्वा सर्व एव महर्षय:॥ ४॥
ऊचु: समेता: सहसा धर्मज्ञा धर्मसंहितम्।
अयं कुशिकदायादो मुनि: परमकोपन:॥ ५॥
यदाह वचनं सम्यगेतत् कार्यं न संशय:।
 
 
अनुवाद
 
  विश्वामित्र जी के वचन सुनकर धर्म को जानने वाले सभी महर्षि एक साथ इकट्ठा हुए और आपस में धर्मपूर्ण विचार-विमर्श किया। उन्होंने कहा, "ब्राह्मणो! कुशिक के पुत्र विश्वामित्र मुनि बहुत क्रोधी हैं और जो बात कह रहे हैं, उसका ठीक से पालन करना चाहिए, इसमें कोई संदेह नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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