श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  1.60.34 
 
 
ततो देवा महात्मानो ऋषयश्च तपोधना:।
जग्मुर्यथागतं सर्वे यज्ञस्यान्ते नरोत्तम॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  हे नरश्रेष्ठ श्रीराम! तत्पश्चात, यज्ञ समाप्त होने पर सभी उच्च श्रेणी के देवताओं और तपस्वी ऋषियों ने जिस प्रकार से यज्ञ में भाग लिया था, उसी प्रकार से वे सभी अपने-अपने स्थानों को लौट गए।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे षष्टितम: सर्ग:॥ ६०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें साठवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ६०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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