श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 33-34h
 
 
श्लोक  1.60.33-34h 
 
 
विश्वामित्रस्तु धर्मात्मा सर्वदेवैरभिष्टुत:॥ ३३॥
ऋषिमध्ये महातेजा बाढमित्येव देवता:।
 
 
अनुवाद
 
  सर्व देवताओं ने ऋषियों के बीच में ही महान तेजस्वी और धर्मपरायण विश्वामित्र मुनि की स्तुति की। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर विश्वामित्र मुनि ने "बहुत अच्छा" कहकर देवताओं के अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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