वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 1: बाल काण्ड
»
सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग
»
श्लोक 33-34h
श्लोक
1.60.33-34h
विश्वामित्रस्तु धर्मात्मा सर्वदेवैरभिष्टुत:॥ ३३॥
ऋषिमध्ये महातेजा बाढमित्येव देवता:।
अनुवाद
play_arrowpause
सर्व देवताओं ने ऋषियों के बीच में ही महान तेजस्वी और धर्मपरायण विश्वामित्र मुनि की स्तुति की। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर विश्वामित्र मुनि ने "बहुत अच्छा" कहकर देवताओं के अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.