उनके ऐसा कहने पर सभी देवता मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र से बोले - "महर्षे! आपने जो कहा, वैसा ही हो, ये सभी वस्तुएँ बनी रहें और आपका कल्याण हो। मुनिश्रेष्ठ! आपके द्वारा रचे गए अनेक नक्षत्र आकाश में वैश्वानर पथ से बाहर प्रकाशित होंगे, और उन्हीं ज्योतिर्मय नक्षत्रों के बीच सिर नीचा किये त्रिशंकु भी प्रकाशमान रहेंगे। वहाँ त्रिशंकु की स्थिति देवताओं के समान होगी और सभी नक्षत्र इस कृतार्थ और यशस्वी नरेश्वर का स्वर्गीय पुरुष की भाँति अनुसरण करते रहेंगे।"