श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 3-4h
 
 
श्लोक  1.60.3-4h 
 
 
स्वेनानेन शरीरेण देवलोकजिगीषया।
यथायं स्वशरीरेण देवलोकं गमिष्यति॥ ३॥
तथा प्रवर्त्यतां यज्ञो भवद्भिश्च मया सह।
 
 
अनुवाद
 
  इस कलयुग में हम अनिवार्यतः अपने वर्तमान शरीर के साथ ही देवलोक प्राप्त करना चाहते हैं। अतः हे ऋषियो, मेरे साथ मिलकर ऐसे यज्ञ का आयोजन करें जिससे मैं अपने वर्तमान शरीर के साथ ही देवलोक प्राप्त कर सकूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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