श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  1.60.27 
 
 
सशरीरस्य भद्रं वस्त्रिशङ्कोरस्य भूपते:।
आरोहणं प्रतिज्ञातं नानृतं कर्तुमुत्सहे॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  देवगणो! आपका मंगल हो! मैंने राजा त्रिशंकु को साक्षात शरीर सहित स्वर्ग भेजने का वचन दे दिया है। इसलिए मैं उस वचन को झूठा नहीं कर सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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