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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग
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श्लोक 25
श्लोक
1.60.25
अयं राजा महाभाग गुरुशापपरिक्षत:।
सशरीरो दिवं यातुं नार्हत्येव तपोधन॥ २५॥
अनुवाद
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महाभाग! ये राजा त्रिशंकु गुरु के शाप से अपना सारा पुण्य नष्ट कर चाण्डाल हो गये हैं। तपोधन! ऐसे में ये सशरीर स्वर्ग में जाने के बिल्कुल भी अधिकारी नहीं हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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