श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  1.60.2 
 
 
अयमिक्ष्वाकुदायादस्त्रिशङ्कुरिति विश्रुत:।
धर्मिष्ठश्च वदान्यश्च मां चैव शरणं गत:॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  ऐ मुनियों में श्रेष्ठ! यह त्रिशंकु हैं, जो इक्ष्वाकु वंश के राजा हैं। यह महान राजा बहुत ही धर्मी और उदार थे और अब मेरी शरण में आ गए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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