श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 17-18h
 
 
श्लोक  1.60.17-18h 
 
 
त्रिशङ्को गच्छ भूयस्त्वं नासि स्वर्गकृतालय:॥ १७॥
गुरुशापहतो मूढ पत भूमिमवाक्शिरा:।
 
 
अनुवाद
 
  ‘मूर्ख त्रिशंकु! तू फिर यहाँसे लौट जा, तेरे लिये स्वर्गमें स्थान नहीं है। तू गुरुके शापसे नष्ट हो चुका है, अत: नीचे मुँह किये पुन: पृथ्वीपर गिर जा’॥ १७ १/२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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