श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 14-15h
 
 
श्लोक  1.60.14-15h 
 
 
दुष्प्रापं स्वशरीरेण स्वर्गं गच्छ नरेश्वर।
स्वार्जितं किंचिदप्यस्ति मया हि तपस: फलम्॥ १४॥
राजंस्त्वं तेजसा तस्य सशरीरो दिवं व्रज।
 
 
अनुवाद
 
  राजन! आज तुम अपने इस शरीर सहित ही उस दुर्लभ स्वर्गलोक को प्राप्त करो। नरेश्वर! यदि मैंने अपनी तपस्या से कुछ भी फल प्राप्त किया है, तो उसके प्रभाव से तुम सशरीर स्वर्गलोक को प्राप्त करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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