नाकुण्डली नामुकुटी नास्रग्वी नाल्पभोगवान्।
नामृष्टो न नलिप्तांगो नासुगन्धश्च विद्यते॥ १०॥
अनुवाद
वहाँ कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो कुण्डल, मुकुट और पुष्पहार से रहित हो। किसी के पास भोग-सामग्री की कमी नहीं थी। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जो नहा-धोकर साफ-सुथरा न हो, जिसके अंगों में चन्दन का लेप न हो और जो सुगंधित न हो।