श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 59: विश्वामित्र का त्रिशंकु का यज्ञ कराने के लिये ऋषिमुनियों को आमन्त्रित करना और उनकी बात न मानने वाले महोदय तथा ऋषिपुत्रों को शाप देकर नष्ट करना  »  श्लोक 9-11h
 
 
श्लोक  1.59.9-11h 
 
 
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा दिशो जग्मुस्तदाज्ञया॥ ९॥
आजग्मुरथ देशेभ्य: सर्वेभ्यो ब्रह्मवादिन:।
ते च शिष्या: समागम्य मुनिं ज्वलिततेजसम्॥ १०॥
ऊचुश्च वचनं सर्वं सर्वेषां ब्रह्मवादिनाम्।
 
 
अनुवाद
 
  आज्ञा मानकर सभी शिष्य चारों दिशाओं में चले गए। फिर तो सब देशों से ब्रह्मवादी मुनि आने लगे। विश्वामित्र के वे शिष्य सबसे पहले तेजस्वी महर्षि के पास लौट आए और समस्त ब्रह्मवादियों ने जो बातें कही थीं, वे सभी उन्होंने विश्वामित्रजी से कह सुनाई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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