श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 59: विश्वामित्र का त्रिशंकु का यज्ञ कराने के लिये ऋषिमुनियों को आमन्त्रित करना और उनकी बात न मानने वाले महोदय तथा ऋषिपुत्रों को शाप देकर नष्ट करना  »  श्लोक 4-5
 
 
श्लोक  1.59.4-5 
 
 
गुरुशापकृतं रूपं यदिदं त्वयि वर्तते।
अनेन सह रूपेण सशरीरो गमिष्यसि॥ ४॥
हस्तप्राप्तमहं मन्ये स्वर्गं तव नराधिप।
यस्त्वं कौशिकमागम्य शरण्यं शरणागत:॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  गुरु के शाप से प्राप्त यह नया रूप धारण करके तुम शरीर सहित स्वर्गलोक जाओगे। राजन! तुम विश्वामित्र की शरण में आ गये हो, जो शरणागतों पर सदैव दया करते हैं, इससे मैं समझता हूँ कि स्वर्ग तुम्हारे हाथ में आ गया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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