वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 1: बाल काण्ड
»
सर्ग 59: विश्वामित्र का त्रिशंकु का यज्ञ कराने के लिये ऋषिमुनियों को आमन्त्रित करना और उनकी बात न मानने वाले महोदय तथा ऋषिपुत्रों को शाप देकर नष्ट करना
»
श्लोक 17-18h
श्लोक
1.59.17-18h
यद् दूषयन्त्यदुष्टं मां तप उग्रं समास्थितम्॥ १७॥
भस्मीभूता दुरात्मानो भविष्यन्ति न संशय:।
अनुवाद
play_arrowpause
यदि मैं उग्र तपस्या में लगा हूँ और दोष या दुर्भावना से रहित हूँ, तो भी जो मुझ पर दोषारोपण करते हैं, वे दुरात्मा भस्मीभूत हो जायँगे, इसमें कोई संशय नहीं है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.