श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 59: विश्वामित्र का त्रिशंकु का यज्ञ कराने के लिये ऋषिमुनियों को आमन्त्रित करना और उनकी बात न मानने वाले महोदय तथा ऋषिपुत्रों को शाप देकर नष्ट करना  »  श्लोक 17-18h
 
 
श्लोक  1.59.17-18h 
 
 
यद् दूषयन्त्यदुष्टं मां तप उग्रं समास्थितम्॥ १७॥
भस्मीभूता दुरात्मानो भविष्यन्ति न संशय:।
 
 
अनुवाद
 
  यदि मैं उग्र तपस्या में लगा हूँ और दोष या दुर्भावना से रहित हूँ, तो भी जो मुझ पर दोषारोपण करते हैं, वे दुरात्मा भस्मीभूत हो जायँगे, इसमें कोई संशय नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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