श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 59: विश्वामित्र का त्रिशंकु का यज्ञ कराने के लिये ऋषिमुनियों को आमन्त्रित करना और उनकी बात न मानने वाले महोदय तथा ऋषिपुत्रों को शाप देकर नष्ट करना  »  श्लोक 12-13h
 
 
श्लोक  1.59.12-13h 
 
 
वासिष्ठं यच्छतं सर्वं क्रोधपर्याकुलाक्षरम्॥ १२॥
यथाह वचनं सर्वं शृणु त्वं मुनिपुंगव।
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम जी कहते हैं, हे सर्वश्रेष्ठ मुनि! वसिष्ठ जी ने क्रोध के भाव से जो कुछ भी कहा है, उसे आप ध्यान से सुनें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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