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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार
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श्लोक 9
श्लोक
1.43.9
नैव सा निर्गमं लेभे जटामण्डलमन्तत:।
तत्रैवाबभ्रमद् देवी संवत्सरगणान् बहून्॥ ९॥
अनुवाद
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गंगा जी भगवान शिव जी के जटाओं में उलझकर, किनारे आने के बाद भी वहाँ से निकलने का रास्ता नहीं पा सकीं और कई वर्षों तक उसी जटाजूट में भटकती रहीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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