श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार  »  श्लोक 36-37h
 
 
श्लोक  1.43.36-37h 
 
 
ततो देवा: सगन्धर्वा ऋषयश्च सुविस्मिता:॥ ३६॥
पूजयन्ति महात्मानं जह्नुं पुरुषसत्तमम्।
 
 
अनुवाद
 
  तब देवता, गन्धर्व और ऋषि अत्यंत विस्मित होकर महापुरुष जलु की स्तुति करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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