श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार  »  श्लोक 35-36h
 
 
श्लोक  1.43.35-36h 
 
 
तस्यावलेपनं ज्ञात्वा क्रुद्धो जह्नुश्च राघव॥ ३५॥
अपिबत् तु जलं सर्वं गंगाया: परमाद्भुतम्।
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! राजा जगु ने इसको गंगा का अपमान समझकर कुपित होकर उस गंगा के सारे पानी को पी लिया। यह संसार के लिए बड़ा ही आश्चर्य की बात हुई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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