श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार  »  श्लोक 30-31h
 
 
श्लोक  1.43.30-31h 
 
 
भगीरथो हि राजर्षिर्दिव्यं स्यन्दनमास्थित:॥ ३०॥
प्रायादग्रे महाराजस्तं गंगा पृष्ठतोऽन्वगात्।
 
 
अनुवाद
 
  (हमने पहले ही समझा है कि) राजर्षि महाराज भगीरथ दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर आगे-आगे बढ़ते जा रहे थे और गंगा जी उनके पीछे-पीछे आ रही थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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