श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  1.43.3 
 
 
प्रीतस्तेऽहं नरश्रेष्ठ करिष्यामि तव प्रियम्।
शिरसा धारयिष्यामि शैलराजसुतामहम्॥ ३॥
 
 
अनुवाद
 
  नरश्रेष्ठ! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। मैं निश्चित रूप से तुम्हारा प्रिय कार्य करूँगा। मैं अपने सिर पर शैलराज की पुत्री गंगा देवी को धारण करूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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