वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 1: बाल काण्ड
»
सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार
»
श्लोक 3
श्लोक
1.43.3
प्रीतस्तेऽहं नरश्रेष्ठ करिष्यामि तव प्रियम्।
शिरसा धारयिष्यामि शैलराजसुतामहम्॥ ३॥
अनुवाद
play_arrowpause
नरश्रेष्ठ! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। मैं निश्चित रूप से तुम्हारा प्रिय कार्य करूँगा। मैं अपने सिर पर शैलराज की पुत्री गंगा देवी को धारण करूँगा।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.