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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार
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श्लोक 12
श्लोक
1.43.12
ह्लादिनी पावनी चैव नलिनी च तथैव च।
तिस्र: प्राचीं दिशं जग्मुर्गङ्गा: शिवजला: शुभा:॥ १२॥
अनुवाद
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हलादिनी, पावनी और नलिनी ये तीन पवित्र गंगाएँ पूर्व दिशा की ओर रवाना हो गईं। उनकी धाराओं में कल्याणकारी जल बह रहा था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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