श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  1.43.10 
 
 
तामपश्यत् पुनस्तत्र तप: परममास्थित:।
स तेन तोषितश्चासीदत्यन्तं रघुनन्दन॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! भगीरथ ने देखा कि गंगा जी भगवान् शङ्कर के जटाओं के बीच गुम हो गयी हैं। तब वे पुनः वहाँ पर भारी तपस्या करने लगे। अपने परम तप की वजह से उन्होंने भगवान् शिव को बहुत प्रसन्न कर लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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