श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 40: सगर के पुत्रों का पृथ्वी को खोदते हुए कपिलजी के पास पहुँचना और उनके रोष से जलकर भस्म होना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  1.40.27 
 
 
ते तं यज्ञहनं ज्ञात्वा क्रोधपर्याकुलेक्षणा:।
खनित्रलांगलधरा नानावृक्षशिलाधरा:॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  भगवान कपिल ने जब यज्ञ को विघ्न डालनेवाले के रूप में पहचाना, तो उनकी आँखें क्रोध से लाल हो गईं। उनके हाथों में खंती, हल और विभिन्न प्रकार के वृक्षों और पत्थरों के टुकड़े थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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