ते तं यज्ञहनं ज्ञात्वा क्रोधपर्याकुलेक्षणा:।
खनित्रलांगलधरा नानावृक्षशिलाधरा:॥ २७॥
अनुवाद
भगवान कपिल ने जब यज्ञ को विघ्न डालनेवाले के रूप में पहचाना, तो उनकी आँखें क्रोध से लाल हो गईं। उनके हाथों में खंती, हल और विभिन्न प्रकार के वृक्षों और पत्थरों के टुकड़े थे।