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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 40: सगर के पुत्रों का पृथ्वी को खोदते हुए कपिलजी के पास पहुँचना और उनके रोष से जलकर भस्म होना
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श्लोक 2-3
श्लोक
1.40.2-3
यस्येयं वसुधा कृत्स्ना वासुदेवस्य धीमत:।
महिषी माधवस्यैषा स एव भगवान् प्रभु:॥ २॥
कापिलं रूपमास्थाय धारयत्यनिशं धराम्।
तस्य कोपाग्निना दग्धा भविष्यन्ति नृपात्मजा:॥ ३॥
अनुवाद
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देवगणो! यह सारी पृथ्वी श्री भगवान वासुदेव की है और श्री लक्ष्मीपति की पत्नी है। वे ही सर्वशक्तिमान भगवान श्रीहरि कपिल मुनि का रूप धर कर लगातार इस पृथ्वी को संभाले हुए हैं। उनके क्रोध की आग से ये सभी राजकुमार जलकर राख हो जायेंगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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