श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 4: महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण का निर्माण करना , लव-कुश का अयोध्या में रामायण गान सुनाना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  1.4.35 
 
 
इमौ मुनी पार्थिवलक्षणान्वितौ
कुशीलवौ चैव महातपस्विनौ।
ममापि तद् भूतिकरं प्रचक्षते
महानुभावं चरितं निबोधत॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय श्रीराम ने अपने भाइयों के ध्यान को आकर्षित करते हुए कहा - "ये दोनों राजकुमार, मुनि होने के बावजूद, राजसी गुणों से संपन्न हैं। वे संगीत में कुशल हैं और महान तपस्वी भी हैं। जिस चरित्र-प्रबंध काव्य का वे वर्णन करते हैं, वह शब्दार्थालंकार, अच्छे गुणों और सुंदर शैली से भरा है। यह बहुत प्रभावशाली है। वृद्ध लोगों का कहना है कि यह मेरे लिए भी शुभ है। इसलिए तुम सब ध्यान से इसे सुनो।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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