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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 37: गंगा से कार्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग
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श्लोक 17-18h
श्लोक
1.37.17-18h
श्रुत्वा त्वग्निवचो गंगा तं गर्भमतिभास्वरम्॥ १७॥
उत्ससर्ज महातेजा: स्रोतोभ्यो हि तदानघ।
अनुवाद
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निष्पाप रघुकुल नन्दन! अग्नि के वचन सुनकर महातेजस्विनी गंगा ने उस अत्यन्त प्रकाशमान गर्भ को अपने उद्गम स्रोतों से निकालकर एक उचित स्थान पर रख दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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