श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 37: गंगा से कार्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग  »  श्लोक 15-16h
 
 
श्लोक  1.37.15-16h 
 
 
तमुवाच ततो गंगा सर्वदेवपुरोगमम्।
अशक्ता धारणे देव तेजस्तव समुद्धतम्॥ १५॥
दह्यमानाग्निना तेन सम्प्रव्यथितचेतना।
 
 
अनुवाद
 
  तब गंगा नदी सर्वदेवों के अग्रगण्य अग्निदेव से बोली - "हे देव! आपके द्वारा स्थापित इस बढ़े हुए तेज को मेरे द्वारा धारण करना असंभव है। आपकी आँच से मैं जल रही हूँ और मेरी चेतना व्यथित हो गयी है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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