तमुवाच ततो गंगा सर्वदेवपुरोगमम्।
अशक्ता धारणे देव तेजस्तव समुद्धतम्॥ १५॥
दह्यमानाग्निना तेन सम्प्रव्यथितचेतना।
अनुवाद
तब गंगा नदी सर्वदेवों के अग्रगण्य अग्निदेव से बोली - "हे देव! आपके द्वारा स्थापित इस बढ़े हुए तेज को मेरे द्वारा धारण करना असंभव है। आपकी आँच से मैं जल रही हूँ और मेरी चेतना व्यथित हो गयी है।"