श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 9-10
 
 
श्लोक  1.33.9-10 
 
 
विसृज्य कन्या: काकुत्स्थ राजा त्रिदशविक्रम:॥ ९॥
मन्त्रज्ञो मन्त्रयामास प्रदानं सह मन्त्रिभि:।
देशे काले च कर्तव्यं सदृशे प्रतिपादनम्॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  ककुत्स्थ कुल के आनंददायक श्रीराम! देवताओं के समान पराक्रमी राजा कुशनाभ ने कन्याओं से यह कहकर उन्हें अंतःपुर में जाने की आज्ञा दी और मंत्रणा के तत्व को जानने वाले उन राजा ने स्वयं मंत्रियों के साथ बैठकर कन्याओं के विवाह के विषय में विचार आरंभ किया। विचारणीय विषय यह था कि किस देश में, किस समय और किस सुयोग्य वर के साथ उनका विवाह किया जाए?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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