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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह
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श्लोक 7-8h
श्लोक
1.33.7-8h
अलंकारो हि नारीणां क्षमा तु पुरुषस्य वा।
दुष्करं तच्च वै क्षान्तं त्रिदशेषु विशेषत:॥ ७॥
यादृशी व: क्षमा पुत्र्य: सर्वासामविशेषत:।
अनुवाद
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स्त्री और पुरुष दोनों के लिए क्षमा ही सबसे बड़ा आभूषण है। हे पुत्रियों! जो क्षमा या सहिष्णुता आप सब लोगों में समान रूप से दिखती है, वैसी तो देवताओं के लिए भी दुष्कर है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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