श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  1.33.6 
 
 
क्षान्तं क्षमावतां पुत्र्य: कर्तव्यं सुमहत् कृतम्।
ऐकमत्यमुपागम्य कुलं चावेक्षितं मम॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  बेटियों! क्षमाशील महापुरुष ही जिसे कर सकते हैं, वही क्षमा तुमने भी की है। यह तुम्हारे द्वारा महान कार्य सम्पन्न हुआ। तुम सभी ने एकमत होकर जो मेरे कुल की मर्यादा पर ही दृष्टि रखी है और काम भाव को अपने मन में स्थान नहीं दिया है—यह भी तुमने बहुत बड़ा काम किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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