श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  1.33.3 
 
 
पितृमत्य: स्म भद्रं ते स्वच्छन्दे न वयं स्थिता:।
पितरं नो वृणीष्व त्वं यदि नो दास्यते तव॥ ३॥
 
 
अनुवाद
 
  हमने उनसे कहा - हे देव! आपका कल्याण हो, हमारे पिता विद्यमान हैं, हम स्वतंत्र नहीं हैं। यदि वे हमें आपको सौंप देंगे तो हम आपकी हो जायँगी, यदि वे नहीं करेंगे तो हम आपकी नहीं हो सकती। यदि आप हमारे पिता के पास जाकर अपना विवाह-प्रस्ताव रखेंगे और वे हमें आपको देने के लिए सहमत होंगे, तभी हम आपकी हो सकती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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