श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  1.33.24 
 
 
स दृष्ट्वा वायुना मुक्ता: कुशनाभो महीपति:।
बभूव परमप्रीतो हर्षं लेभे पुन: पुन:॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  वायु के रूप में आए वातरोग को छोड़कर कन्याओं को देखकर पृथ्वीपति राजा कुशनाभ अत्यंत प्रसन्न हुए और बार-बार खुशी का अनुभव करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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