श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  1.33.23 
 
 
स्पृष्टमात्रे तदा पाणौ विकुब्जा विगतज्वरा:।
युक्तं परमया लक्ष्म्या बभौ कन्याशतं तदा॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  विवाह के समय जैसे ही उन कन्याओं के हाथ ब्रह्मदत्त के हाथों से स्पर्श हुए, वे तुरंत कुबड़ेपन के दोष से मुक्त हो गईं, स्वस्थ हो गईं और अत्यधिक लक्ष्मी से युक्त हो गईं। तब वह सौ कन्याएँ अत्यंत सुंदर दिखाई देने लगीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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