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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 33: राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति,कुशनाभ की कन्याओं का विवाह
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श्लोक 21
श्लोक
1.33.21
तमाहूय महातेजा ब्रह्मदत्तं महीपति:।
ददौ कन्याशतं राजा सुप्रीतेनान्तरात्मना॥ २१॥
अनुवाद
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महातेजस्वी राजा कुशनाभ ने ब्रह्मदत्त को बुलवाया और उन्हें अत्यंत प्रसन्नता के साथ अपनी एक सौ कन्याएँ भेंट कीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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